फिर नज़रों से नज़रों
की बात चले
उसी तरह प्यार की
सौग़ात चले
यूँ हम बैठे रहे
महफ़िल में सारी रात
जब वो चले
तो हम उनके साथ चले
चाँद को गुमां था
रात को हसीन करने का
जब उसकी नज़रें उठे तो
सिर्फ़ उसकी बात चले
क्या कह कर
हुस्न माँगा होगा उसने खुदा से
जहाँ जहाँ से वो गुज़रे
सिर्फ़ उसकी बात चले
जंग लग गयी है लोगों की
तलवार ख़ंजर भालों को
अब तो उसकी आँखों से
सिर्फ़ वार चले
दुश्मन भी पनाह माँगता होगा
किस ज़ालिम से पाला पड़ा है
सामने दरिया है फिर भी
उसको छूने की प्यास चले
The role of a writer is not to say what we all can say, but what we are unable to say.
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