उसको मेरा ख़याल था ही नहीं,
इसका उसको मलाल था ही नहीं.
वो जो देता जवाब क्या देता ,
पास मेरे सवाल था ही नहीं.
रंग नफ़रत का बेचता था वो,
प्यार का तो गुलाल था ही नहीं.
खून कहता उसे में कैसे भला ,
जिस लहू में ऊबाल था ही नहीं.
मेरे चहरे पे वो ही दिखता था, (ज़लाल =तेजमयी प्रकाश)
मुझमें मेरा ज़लाल था ही नहीं.
लाख कहता रहा वो मेरे बिना,
उसका जीना मुहाल था ही नहीं.
उसकी रहमत अता मुझे न हुई ,
पास मेरे कमाल था ही नहीं.
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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